पांच वर्ष के बच्चे की आंख जरूर चेक कराए – डॉ. संजय बाबू
बचपन, महिलाओ को डिलेवरी और उम्र के अनुसार लक्षण होने पर जाँच कराने की नेत्र विशेषज्ञ ने दी सलाह
कथनी_करनी न्यूज़
बाराबंकी। नजर दोष यानि आँखों की नजर का कमजोर होना आजकल ज्यादातर लोग इस समस्या का सामना कर रह है। खासकर 40 वर्ष की उम्र होने के बाद ये समस्या बढ़ती है। अगर ऐसी ही समस्या कम उम्र में शुरू हो रही है तो इसका कारण बचपन में चेकअप नहीं कराए जाने के कारण हो सकती है। इसलिए पांच वर्ष की उम्र होने पर बच्चो का चेकअप जरूर करवाना चाहिए।
आँखों के बढ़ते रोगो का क्या कारण है, समय रहते इससे पूर्व क्या बचाव करें..? डिप्टी सीएमओ एवं नेत्र चिकित्सक डॉ. संजय बाबू का कहना है कि बढ़ते नेत्र रोगों का सबसे महत्वपूर्ण कारण मरीज का जागरूक नहीं होना है। रोगों से बचाव के लिए पांच वर्ष की उम्र में ही आँखों का चेकअप करवा लेने से भविष्य में अनेक नेत्र रोगों से बचाव किया जा सकता है। क्योंकि पांच वर्ष की उम्र में कुछ बच्चो की आंखे सफ़ेद दिखने लगती है। बताया कि अक्सर बच्चो में जन्मजात मायोपिया, कैंसर और मोतियाबिंद होता है।
कई मरीज एक आंख से दिखाई नहीं देने की अवस्था पर भी अपना चेकअप नहीं कराते। डॉ. संजय ने बताया कि मायोपिया यानि दूर दृष्टि दोष 30% तक होता है। मोबाइल फोन घातक है, आँख के पर्दे पर सीधा प्रभाव पड़ता है। पूरी तरह देखा जाये तो मोबाइल फोन नजर खराब करने का बड़ा कारण है। प्रेस बायोपिया यानि निकट दृष्टिदोष 40 वर्ष के बाद होता है। बच्चों में सबल बाई बीमारी पाई जाती है, कक्षा एक के बच्चो का चेकअप होना चाहिए।
दूसरा क्रम 20 से 50 की उम्र में शुरू होता है, जिसमें आंसू आना, आँखों का वजनदार होना, सबल बाई व गर्भवती महिलाओ को भी डिलेवरी के बाद आँखों का चेकअप जरूर कराना चाहिए।
50 की उम्र के बाद होने वाले लक्षण
50 की वर्ष के ऊपर के लोगो में 60 प्रतिशत मोतियाबिंद, सबल बाई -10% और दो % को आई राईटिस (जिसमें आँखों में सूजन आती है) नार्मल चेकअप कराना चाहिए। वर्तमान में बदलते मौसम के समय सीजनल बीमारी शुरू होती है जिनमें एक बैक्टिरियल और दूसरा वायरल कंजेक्टि वाइरस है। दोनों अलग-अलग बीमारी है। उन्होने तीसरी धूल मिट्टी से एलर्जी कंजेक्टि वायटिस होती है।
प्राथमिक उपचार और उपाय
उपाय बताते हुए नेत्र सर्जन संजय बाबू ने कहा कि ऊपर बताये गए किसी भी लक्षण या उम्र के हिसाब से होने वाली बीमारी की दशा में जाँच करानी चाहिए। आमतौर पर सिफ्लॉक्स ड्रॉप का प्रयोग करने की सलाह दी। चोट लगने पर ड्रॉप डालने के बाद चेकअप कराने की सलाह भी दी।