प्राचीन धनोखर हनुमान मंदिर का इतिहास

  1. धनोखर_मंदिर का कायाकल्प, निखरता दिव्य स्वरूप

    138 वर्षो में धरोहर में मिलता है, द्वापर युग की महिमा का वर्णन…

    दिनेश चंद्र श्रीवास्तव….

    बाराबंकी। शहर के मुख्य चौराहे धनोखर पर स्थित शिव-हनुमान मंदिर का ढ़ेड दशक बाद हुए कायाकल्प से इसकी गरिमा में चार चाँद लग गये है। मंदिर में शिवालय पर लगा एसी, प्रांगण में कूलर, इसकी रंगाई-पुताई और सज्जा होने के बाद यह मंदिर अब बढ़ते वक़्त के साथ आधुनिक होने के बावजूद अपने वास्तविक रुप को सजोये हुए है।

    आसपास के जिलों तक में मशहूर हो चुका धनोखर सरोवर के तट पर बना शिव-हनुमान मंदिर दूर-दराज में रहने वाले शिव और हनुमान के भक्तो की आस्था का केंद्र रहा है। यहां सप्ताह के सभी दिनों में श्रद्धालू दर्शन को आते है, खास करके सोमवार, मंगलवार और शनिवार को भक्तो का यहां ताँता लगता है। भक्त मंदिर में अटूट आस्था रखते हुए भगवान शिव और बजरंगबली के साथ अन्य देवी-देवताओं की पूजा करने पहुंचते है। 90 वर्षो से शर्मा परिवार की देखरेख में धनोखर मंदिर, बढ़ते वक़्त के साथ आधुनिक रूप में विकसित हो चुका है। यहां ज्येष्ठ माह शुरू होने से पूर्व भक्त और भगवान की आस्था के बीच भीषण गर्मी के प्रकोप को ध्यान में रखते हुए किये गये पुख्ता इंतजामो की सभी तारीफ कर रहे है। मंदिर से अपने पिता स्व. श्रीस्वामी दयाल प्रभाकर के बाद बीते चालीस वर्षो से मंदिर की देख-रेख कर रहे उनके सुपुत्र पं. श्यामनाथ शर्मा ने अपनी सूझ-बूझ से हनुमान मंदिर की गरिमा को दिव्य रूप प्रदान करने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने समय-समय पर कायाकल्प करते रहने के बाद, इस बार मंदिर के शिवालय में एयर कंडीशन और प्रांगण में कूलर, वॉटर कूलर, सतसंग हाल के साथ मंदिर के शुरुआती स्वरूप से बिना छेड़छाड़ किये रंगाई-पुताई कराकर मंदिर को सुन्दर और भव्य स्वरूप दिया है। इसके अलावा श्रद्धालुओं की सुविधा के लिये मंदिर के बाहर अतिक्रमण हटवाया जो सुरक्षा की दृष्टि से बेहतर साबित हुआ है। पं. श्यामनाथ शर्मा बताते है कि हनुमान मंदिर लगभग 138 वर्ष पुराना है। यहां भगवान गणेश, नंदी, माँ पार्वती, शिव, श्रवण कुमार, भगवान श्रीराम और लक्षमण को कंधे पर बिठाये महावीर हनुमान जी की प्रतिमा के साथ शनिदेव की प्रतिमा के अलावा मंदिर के गुम्बद पर अनेक देवी-देवता, यक्ष, ऋषि-मुनि आदि महान विभूतियों की प्रतिमाए बनी हुई है, जो द्वापर युग का वर्णन करते हुए दिखती है। मंदिर के तीन दशक से पुजारी मुरारीलाल बाजपेई अपने पिता के बाद से यहां पूजा-पाठ कराते आये है।

    यहां है, 138 वर्ष पुराने प्रमाण

    मंदिर के गुम्बद पर लगे शिलापट्ट पर अंकित 1944 संवत अब वर्तमान में 2082 संवत चल रहा है, उसके हिसाब से मंदिर के शिलान्यास का समय बताता है। इस हिसाब से यह मंदिर, कम से कम 138 वर्ष पुराना होने की कहानी है। इस शिलापट्ट को स्थान्नतरित करके अब हनुमान जी की प्रतिमा के पास लगवाया गया है। पं श्यामनाथ शर्मा बताते है कि मंदिर की बीते 40 वर्ष से देखरेख कर रहे है, उससे पहले 50 वर्षो तक आपके पिता स्व. स्वामी दयाल प्रभाकर ने मंदिर की देखभाल की थी। इस प्रकार एक ही परिवार के 90 वर्षो से हनुमान मंदिर की सेवा और देखरेख के दारोमदार के चलते मंदिर के भव्य रूप ले चुका है।

    तीन भाषाओं में लिखा दोहा, कहता है दास्तान

    धनोखर मंदिर के इतिहास की दास्तान यहां लगा शिलापट्ट देता नजर आता है, जो संस्कृति, हिंदी और उर्दू में है। तीन भाषाओ में लिखा दोहा इस प्रकार है।

    *मुल सम्वत उन्नीस सै अधिक च्वालिस साल!*
    *शिव स्थान तडाग तट ख्यो भिखारी लाल!!*

    इसका जो अर्थ निकलता है कि 1944 सम्वत में मंदिर का निर्माण करते हुए धनोखर तालाब के तट पर भिखारीलाल ने भगवान शिव को स्थान दिया था। जिसका उन्होंने हिंदी संस्कृति के साथ उर्दू में वर्णन शिलापट्ट पर लिखें दोहे में किया गया है। सम्वत 1944 की सन् से तुलना करे तो इस हिसाब से मंदिर का निर्माण सन् 1887 का समय सामने आता है।

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