माता -पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों के लिए भरण-पोषण अधिनियम 2007 विषय पर विधिक जागरूकता शिविर
भारतीय समाज में माता-पिता, बुजर्गो का स्थान सर्वोपरि – अपर जनपद न्यायाधीश
कथनी_करनी न्यूज़
बाराबंकी। उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण लखनऊ के मंशानुसार प्रतिमा श्रीवास्तव, जनपद न्यायाधीश व अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के निर्देशन में माह नवम्बर 2025 के प्लान आफ एक्शन के अन्तर्गत माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों के लिए भरण पोषण अधिनियम 2007 विषय पर मातृपित्र सदन सफेदाबाद में विधिक जागरूकता एवं साक्षरता शिविर का आयोजन हुआ। इस शिविर में सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अतिरिक्त मातृपित्र सदन में रहने वाले बुजुर्ग महिला-पुरूष, संस्था में कार्य करने वाले कर्मचारी, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के कर्मचारी एवं अन्य लोग शामिल हुये।
श्रीकृष्ण चन्द्र सिंह अपर जनपद न्यायाधीश व सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के द्वारा शिविर में उपस्थित लोगों को खासतौर पर वरिष्ठ नागरिकों को भरण-पोषण अधिनियम 2007 के विषय में जानकारी देते हुये कहाकि हमारे भारतीय समाज में माता-पिता और बुजुर्गों का स्थान सर्वाेपरी माना गया है। हमारी संस्कृति कहती है “माता-पिता देवो भवः” लेकिन समय के साथ सामाजिक संरचना में बदलाव आया है। संयुक्त परिवारों की जगह एकल परिवार आने लगे, प्रवास और व्यस्तता बढ़ी, और कई वृद्धजन उपेक्षा, अकेलेपन और आर्थिक असुरक्षा का सामना करने लगे। इन्हीं समस्याओं को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2007 में एक महत्वपूर्ण कानून बनाया, जिसे हम माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण अधिनियम, 2007 के नाम से जानते हैं। इसका उद्देश्य सरल बुजुर्गों को सम्मानजनक जीवन का अधिकार सुनिश्चित करना। अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों को भरण-पोषण का कानूनी अधिकार देना, उपेक्षा और परित्याग से बुजुर्गों को सुरक्षा प्रदान करना, तेज, सरल और स्थानीय स्तर पर न्याय प्राप्ति की व्यवस्था उपलब्ध कराना, परिवार में सम्मान, सहयोग और कर्तव्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना। इस अधिनियम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह परिवार के भीतर जिम्मेदारी तय करता है और बुजुर्गों को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत माता-पिता कृ चाहे वे 60 वर्ष से कम हों या अधिक, वरिष्ठ नागरिक 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के पुरुष एवं महिलाएँ, दादा-दादी, नाना-नानी भले ही उनके नाम पर कोई संपत्ति न हो, दत्तक माता-पिता के गोद लिए हुए माता-पिता भी दावा कर सकते हैं, यदि माता-पिता असमर्थ हों, तो उनकी ओर से कोई भी व्यक्ति आवेदन कर सकता है। पुत्र, पुत्री, दामाद, बहू, पोते-पोती, ऐसे रिश्तेदार जिनके पास बुजुर्ग की संपत्ति से लाभ मिलता है और वे संतानें भी, जो सक्षम हों और आय अर्जित करते हों भरण-पोषण देने के लिए जिम्मेदार है यह जिम्मेदारी सिर्फ आर्थिक नहीं है, बल्कि नैतिक और सामाजिक दायित्व भी है। भरण-पोषण में भोजन, वस्त्र, आवास, चिकित्सीय उपचार, देखभाल और अन्य जरूरी सुविधाएँ अर्थात वह सब कुछ जो बुजुर्गों को सम्मानजनक जीवन प्रदान करे। आवेदन तहसील उपजिला स्तर के भरण-पोषण अधिकरण में दिया जाता है। आवेदन करने की प्रक्रिया सरल और निःशुल्क है। अधिकरण 90 दिनों के भीतर मामले का निपटारा करने का प्रयास करता है। आवश्यकता पड़ने पर आदेश 30 दिनों में भी पारित किया जा सकता है। यदि संतान या संबंधी अधिकरण के आदेश के बावजूद भरण-पोषण नहीं देते हैं, तो कानून कड़ा रुख अपनाता है। अधिकतम 3 महीने का साधारण कारावास, जुर्माना या दोनों हो सकता है। वरिष्ठ नागरिकों के लिए हेल्पलाइन, वृद्धाश्रम, चिकित्सा सुविधाएँ, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा निःशुल्क कानूनी सहायता, समाज में जागरूकता अभियान सरकार और समाज की जिम्मेदारी है। हम सबको मिलकर यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी बुजुर्ग अकेला न रहे, उपेक्षित न रहे और असुरक्षित न रहे।
शिविर का संचालन मात्र पित्र सदन के कर्मचारी द्वारा किया गया।