ऋषि भारद्वाज और वाल्मीकि से लिया आशीर्वाद, चित्रकूट चले कृपानिधान!
कथनी_करनी न्यूज़
बाराबंकी। श्रृंगवेरपुर के राजा निषादराज के सहयोग से गंगा नदी पार करने के उपरांत श्री राम, अनुज लक्ष्मण और देवी सीता के साथ प्रयागराज पंहुचे, जहां उन्होंने ऋषि भारद्वाज से आशीर्वाद ग्रहण किया, इस दौरान मुनि के वचन सुनकर मुनि भारद्वाज की भक्ति भाव सेवा से प्रसन्न होकर प्रभु राम सकुचा गए, श्री रामचंद्र जी ने भारद्वाज मुनि का यश करोड़ प्रकार से सबको सुनाया, राम कह रहे हैं जिसको आप आदर दे वही बड़ा ह, इस प्रकार रामचंद्र जी और मुनि भारद्वाज आपस में बात करते हुए विनम्र हो गए और असीम सुख का अनुभव करने लगे। यह समाचार सुनकर प्रयाग के निवासी, साधु, संत, ब्रह्मचारी तपस्वी मुनि सब मुनि भारद्वाज के आश्रम आए और सीता जी सहित राम लक्ष्मण के प्रेम पूर्वक दर्शन किए सब ने राम लखन और सीता जी को आशीर्वाद दिया राम जी ने सबको प्रणाम किया। सभी ने प्रभु राम सहित सीता मैया और लक्ष्मण के दर्शन कर अपने आप को भाग्यवान समझ, राम जी की प्रशंसा करते हुए यह सभी लोग वापस चले गए सभी ने प्रयाग में स्नान कर मुनि भारद्वाज से जाने की आज्ञा मांगी प्रभु राम मनी से बोले हमें मार्ग बताएं तब मुनि हंसकर बोले प्रभु आप जिस मार्ग पर जाएंगे वह मार्ग सुंदर हो जाएगा आपके लिए सभी मार्ग सुगम है।
इस दौरान ऋषि भारद्वाज भगवान राम से प्रयागराज में ही निवास करने की बात कहते हैं लेकिन प्रभु श्री राम यह तर्क देते हैं कि प्रयागराज की सीमा उनके राज्य से सटी हुई है और उनके राज्यवासी यदि इस सूचना को का जाएंगे तो वह सभी इस स्थान पर आ जाएंगे जिस कारण से साधु संतों की साधना में विघ्न पैदा होगी, यह कहकर श्री राम गमन शुरू करते है।
अपने वनवास के दौरान प्रभु श्री राम अपने मार्ग पर आगे बढ़ते हुए वाल्मीकि जी के आश्रम पहुंचे उन्होंने देखा कि मुनि का निवास स्थान बहुत सुंदर है जहां सुंदर पर्वत वन और पवित्र जल भी है पवित्र सुंदर आश्रम को देखकर श्री रामचंद्र जी हर्षित हुए, श्री राम जी का आगमन सुनकर मुनि वाल्मीकि जी उन्हें लेने आगे आए श्री रामचंद्र जी ने मुनि को दंडवत किय, विप्र श्रेष्ठ ने उन्हें आशीर्वाद दिया, कंद मूल फल ग्रहण करने के उपरांत मुनि ने श्री राम को विश्राम स्थल की जानकारी दी और वाल्मीकि जी के मन में बड़ा भारी आनंद हो रहा है।
मुनिश्रेष्ठ प्रभु श्री राम से उनके वनवास की कथा विस्तार पूर्वक जानते हैं, इस दौरान प्रभु श्री राम कहते हैं कि पिता की आज्ञा का पालन, माता का हित और भरत जैसे भाई का राजा होना और फिर मुझे आपके दर्शन होना यह सब मेरे पुण्य का प्रभाव है, प्रभु श्री राम ने कहा, मुनिराज आपके चरणों का दर्शन करने से आज हमारे सब पुण्य सफल हो गए हमारे सारे पुण्य का फल मिल गया। अब जहां आपकी आज्ञा हो और जहां कोई भी मुनि उद्वेग को प्राप्त न हो, प्रभु श्री राम ने मुनिराज से पूछा कि वह स्थान बतलाइए जहां मैं लक्ष्मण और सीता सहित जाऊं और वहां सुंदर वन हो और घास की कुटिया बनाकर कुछ समय निवास करूं!
श्री राम जी की सहज सरल वाणी सुनकर मुनि वाल्मीकि बोले हे रघुकुल के ध्वज स्वरूप आप ऐसा क्यों ना कहेंगे आप सदैव वेद की मर्यादा का रक्षण करते हैं, देवताओं के कार्य के लिए आप राजा का शरीर धारण करके दुष्ट राक्षसों का नाश करने के लिए चले हैं, हे राम आपका स्वरूप वाणी के अगोचर बुद्धि से परे अव्यक्त कथन है और अपार है। हे राम, आप मुझसे पूछते है कि मैं कहां रहूं परंतु आप ऐसा कोई स्थान बताएं जहां आप न हो! वह स्थान बता दीजिए जहां आप ना रहते हो तब मैं आपके रहने के लिए कुछ स्थान दिखाऊ?
मुनि के प्रेमरस से सने हुए वचन सुनकर श्री रामचंद्र जी सकुचा कर मन में मुस्कुराए, वाल्मीकि जी हंसकर फिर अमृत रस में डूबी हुई मीठी वाणी से बोले, हे राम जी सुनिए अब मैं वह स्थान आपको बताता हूं जहां आप सीता जी और लक्ष्मण जी सहित निवास करिए, जिनके कान समुद्र की भांति आपकी सुंदर कथारूपी अनेकों सुंदर नदियों से निरंतर भरते रहते हैं परंतु कभी पूरे नहीं होते उनके हृदय आपके लिए सुंदर हैं, घर हैं और जिन्होंने अपने नेत्रों को चातक बना रखा है जो आपके दर्शन रूपी मेघ के लिए सदा लालायित रहते हैं, जिनके मस्तक देवता गुरु और ब्राह्मणों को देखकर बड़ी नम्रता के साथ प्रेम सहित झुक जाते हैं जिनके हाथ नित्य श्री रामचंद्र के चरणों की पूजा करते हैं और जिनके हृदय में श्री रामचंद्र जी आपका ही भरोसा है दूसरा नहीं,
जाति-पांति धन-धन धर्म बड़ाई प्यारा परिवार और सुख देने वाला घर सबको छोड़कर जो केवल आपको ही हृदय में धारण किया है, रघुनाथ जी आप उसके हृदय में रहिए। जिनको कभी कुछ नहीं चाहिए और जिसको आपसे स्वाभाविक प्रेम है आप उसके मन में निरंतर निवास कीजिए वह आपका अपना घर है।
इस प्रकार मनुष्य वाल्मीकि जी ने श्री रामचंद्र को घर दिखाएं, उनके प्रेम पूर्ण वचन श्री राम जी के मन को अच्छे लगे फिर मुनि ने कहा हे सूर्यकांत स्वामी सुनिए अब मैं इस समय के लिए सुखदायक आश्रम बतालाता हूं। आप चित्रकूट पर्वत पर निवास कीजिए वहां आपके लिए सब प्रकार की सुविधा है सुहाना पर्वत है और सुंदरवन है। वह हाथी, सिंह हिरण और पंछियों का बिहार स्थल है, अत्रि आदि से बहुत से श्रेष्ठ मुनि वहां निवास करते हैं जो योग, जप और तप करते हुए शरीर को कसते हैं, हे राम जी चलिए सबके परिश्रम को सफल कीजिए और पर्वत श्रेष्ठ चित्रकूट को भी गौरव दीजिए।
लीला मंचन के दौरान लीला व्यास प्रमोद पाठक,प0 संजय तिवारी, मुख्य श्रृंगारी, रमेश कुरील, पंडित लल्लू, अनिल अग्रवाल, शिव कुमार वर्मा, राजू पटेल, प्रशांत सिंह, राजीव पाठक, अमर सिंह, रजत त्रिवेदी, कुणाल सिंह, अक्षत सहित नेक लोग मौजूद रहे।