84 कोसी परिक्रमा मार्ग और मुर्तिहाघाट सौ वर्ष पूर्व घाघरा में समाया
लुप्त हुआ अयोध्या का चौथा गुप्तद्वार घृताक्क्षी कुंड
ग्रामीणों ने स्थान बदल कर बचाया प्राचीन शिव मंदिर
दिनेश चंद्र श्रीवास्तव….
बाराबंकी। हिमालय से नेपाल के रास्ते होकर निकलने वाली घाघरा नदी बहुत ही घातक नदियों में शुमार है। इस नदी ने सदियों से अनेक गांव और बाजार ही नहीं प्राचीन मंदिरो और धार्मिक स्थलों को भी नेस्तनाबूत किया है। जिसके कुछ प्रमाण आज भी जिले के तराई क्षेत्रो में मौजूद है।
जिले की दरियाबाद विधानसभा में बारिनबाग से मात्र चार किलोमीटर की दूरी पर करीब सौ वर्ष पूर्व घाघरा नदी ने जब रौद्र रूप दिखाया था। तब यहां स्थित अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा का मार्ग, घृताक्क्षी कुंड, बावली, बसा बसाया गाँव, मुर्तिहा बाजार, मुर्तिहा घाट और मंदिर घाघरा अपने साथ बहा ले गई थी। हिमालय के मानसरोवर झील से तिब्बत होते हुए नेपाल में आकर दो भागो में बंट जाती है। जिसकी पूर्वी शाखा को शिखा और पश्चिम शाखा को कर्नाणी के नाम से जाना जाता है। फिर भारत तक आकर एक हो जाने पर इसे घाघरा नदी और बाराबंकी से अयोध्या की तरफ बढ़ने पर सरयू के नाम से जाना जाता है। जो गंगा नदी की मुख्य सहायक नदी है। इसके बहाव का कटान बहुत ही भयावह होता है। जो अपने किनारो को अंदर अंदर काटता है, यही वजह है कि इसके किनारे पर बसे गाँव के गांव अचानक इसमें समा जाते है। ऐसा ही करीब एक शताब्दी पूर्व हुआ था। जब घाघरा ने रास्ता बदलकर कटान करते हुए तीन किमी पश्चिम दिशा की तरफ बढ़ आई। ये स्थान बसंतपुर घाट है। सौ वर्ष पूर्व तीन किलोमीटर का रास्ता बदलने के बीच घाघरा द्वारा बसंतपुर गाँव के पास बड़ी त्रासदी घटित हुई। जिसमे अयोध्या का चौथा गुप्तद्वार, घृताक्क्षी कुंड, 84 कोस थी। परिक्रमा का मार्ग, काफी पुराना मुर्तिहा बाजार और मुर्तिहा मंदिर में सब जलमग्न हो गया था।
जब घाघरा ने बदला था अपना रास्ता
बसंतपुर घाट के निवासी प्रमोद कुमार सिंह का कहना है कि अपने पूर्वजों से सुना है, तीन किलोमीटर दूर बहने वाली घाघरा ने ने जब सौ वर्ष पहले अपना रास्ता बदला तो बहुत बड़ी त्रासदी हुई थी। यहां का मुर्तिहा बाजार, अयोध्या का चौथा गुप्तद्वार, 84 कोसी परिक्रमा मार्ग और प्राचीन घृताक्क्षी कुंड में सभी घाघरा लील गई।
घाघरा त्रासदी की गवाही देता मंदिर
घाघरा के बसंतपुर घाट से मात्र 20 मीटर की दूरी पर स्थित मंदिर जो करीब सौ वर्ष पुराना है। इस मंदिर में एक खंडित शिवलिंग और दर्जनों मूर्तियां भी है। प्रमोद सिंह, राघवेंद्र और सूरज बताते है कि इस मंदिर में रखी सभी मूर्तियों के लिए तीन बार मुर्तिहा मंदिर का स्थान बदला गया है। क्योंकि घाघरा ने तीन बार गाँव की तरफ कटान किया हर बार मंदिर और प्रतिमाओं को उनके पूर्वजों ने बचाने के लिए स्थानातरित किया जो अब यहां है।
अंग्रेजी हुकूमत ने किया था निरीक्षण
घाघरा ने सौ वर्ष पूर्व जब अंग्रेजी हुकूमत के समय तीन किलोमीटर आकर बसंतपुर का रुख किया, तब बड़ी त्रासदी हुई थी। बसा बसाया मुर्तिहा बाजार, अयोध्या का चौथा गुप्तद्वार, घृताक्क्षी कुंड और बावली आदि सभी बह गए या जलमग्न हो गए। इसके लिए यहां के लोगो ने कोर्ट तक गए तो संज्ञान लेकर ब्रिटिश अधिकारियो ने मौके पर पहुंच कर पड़ताल की और पुनः निर्माण का आश्वासन दिया था।